Wednesday, March 1, 2017

पानीपत के युद्ध

पानीपत के युद्ध: पानीपत में तीन ऐतिहासिक लड़ाईयां हुईं जो भारतीय इतिहास में बहुत अहम् घटना रही है 

पानीपत का पहला युद्ध

उत्तरी भारत में लड़ा गया था और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। यह उन पहली लड़ाइयों मे से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था।
सन् 1526 में, काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर, की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, की एक ज्यादा बड़ी सेना को युद्ध में परास्त किया।
युद्ध को 21 अप्रैल को पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है। पानीपत वो स्थान है जहाँ बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत के नियंत्रण को लेकर कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गयीं।
एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 15000 के करीब सैनिक और 20-24 मैदानी तोपें थीं। लोधी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोदी की ओर से लड़े थे।

पानीपत का दूसरा युद्ध (5, November 1556),  

पानीपत का द्वितीय युद्ध उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य (लोकप्रिय नाम- हेमू ) और अकबर की सेना के बीच 5 नवंबर, 1556 को पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए यह एक निर्णायक जीत थी।  इस युद्ध के फलस्वरूप दिल्ली पर वर्चस्व के लिए मुगलों और अफगानों के बीच चलने वाला संघर्ष अन्तिम रूप से मुगलों के पक्ष में निर्णीत हो गया और अगले तीन सौ वर्षों तक मुगलों के पास ही रहा।
पानीपत का तीसरा युद्ध (14, January 1761),  
पानीपत का तृतीय युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच।पानीपत की तीसरी लड़ाई (95.5 किमी) उत्तर में मराठा साम्राज्य और अफगानिस्तान के अहमद शाह Abdali, दो भारतीय मुस्लिम राजा Rohilla अफगान दोआब, और अवध के नवाब Shuja-उद-Daula (दिल्ली के सहयोगी दलों ) के एक गठबंधन के साथ अहमद शाह Abdali के एक उत्तरी अभियान बल के बीच पर 14 जनवरी 1761, पानीपत, के बारे में 60 मील की दूरी पर हुआ | लड़ाई 18 वीं सदी में सबसे बड़े ,लड़ाई में से एक माना जाता है और एक ही दिन में एक क्लासिक गठन दो सेनाओं के बीच लड़ाई की रिपोर्ट में मौत की शायद सबसे बड़ी संख्या है।
मुग़ल राज का अंत (१६८०-१७७०) में सुरु हो गया था, जब मुगलो के जायदातर भू भागो पे मराठो का अधिपत्य हो गया था। गुजरात और मालवा के बाद बाजी राव ने १७३७ में दिल्ली पे मुगलो को हराकर अपने अधीन कर लिया था और दक्षिण दिल्ली के जायदातर भागो पे अपने मराठाओं का राज था। बजी राव के पुत्र बल जी बजी राव ने बाद में पंजाब कभी जीतकर अपने अधीन करके मराठो कि विजय पताका उत्तर भारत में फैला दी थी। पूँजाब विजय ने १७५८ में अफगानिस्तान के दुरानी शासको से टकराओ को अनिवार्य करदिया था। १७५९ में दुरानी शासक अहमद शाह अब्दाली ने कुछ पसतून कबीलो के सरदारो और भारत में अवध के नवाबो से मिल के गनगा के दौवाब क्षेत्र में मराठो से युद्ध के लिए सेना एकत्रीरत की.इसमें रोहलिआ अफगान ने भी उसकी सहायता की. पानीपत का तीसरा युद्ध इस तरह समिलित इस्लामिक सेना और मराठो के बीच लड़ा गया। अवध के नवाब ने इसे इस्लामिक सेना का नाम दिया और बाकि मुसलमो को भी इस्लाम के नाम पे इकठा किया। जबकि मराठा सेना ने अन्य हिन्दू राजाओ से सहायता की उम्मीद कि थी (राजपूतो और जाटो) जो कि उन्हें न मिल सकी. इस युद्ध में इस्लामिक सेना में ६००००- 100000 सैनिक और मराठो के और से ४५०००-६०००० सैंकिओ ने भाग लिया .
१४ जनुअरी १७६१ को हुए इस युद्ध में भूखे ही युद्ध में पऊॊचे मराठो को सुरवती विजय क बाद हर का मुख देखना परा . इस युद्ध में दोनों पक्षो कि हानियों के बारे ने इतिहासकारो में भरी मतभेद है। फिर ये मन जाता है कि इस युद्ध में १२०००० लोगो ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था जिसमे अहमद शाह अब्दाली विजय हुई थी था मराठो को भरी हानि उठनी पारी.

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