राजर्षी छत्रपती शाहू महाराज |
पूरा नाम - छत्रपति
शाहू महाराज
अन्य नाम - यशवंतराव
जन्म - 26 जुलाई, 1874
मृत्यु - 10 मई, 1922
अभिभावक - श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे
पत्नी - लक्ष्मीबाई
कर्म भूमि - भारत
राजर्षी छत्रपती शाहू महाराज को एक भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक
के रूप में जाना जाता था। वे कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी
प्रसिद्ध हैं। छत्रपति शाहू महाराज ऐसे व्यक्ति
थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता
बनाए रखी। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया
शुरू की थी। गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान
करने के आदेश दिए। शाहू महाराज के शासन के दौरान 'बाल विवाह' पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उन्होंने अंतरजातिय विवाह
और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज उठाई थी। इन गतिविधियों के लिए महाराज
शाहू को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। शाहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक 'सत्य
शोधक समाज', फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे।
जन्म परिचय
छत्रपति
शाहू महाराज का जन्म 26 जुलाई, 1874 ई.
को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत
जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति शाहू महाराज का बचपन का नाम 'यशवंतराव' था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य
करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी
की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह
राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई.
में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को शाहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर
रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा। यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी
समय बाद अर्थात 2 अप्रैल, सन 1894 में
आया था।
विवाह
छत्रपति
शाहू महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर
की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।
छत्रपति
शाहू महाराज का जन्म 26 जुलाई, 1874 ई.
को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत
जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति शाहू महाराज का बचपन का नाम 'यशवंतराव' था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य
करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी
की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह
राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई.
में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को शाहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर
रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा। यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी
समय बाद अर्थात 2 अप्रैल, सन 1894 में
आया था।
विवाह
छत्रपति
शाहू महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर
की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।
शिक्षा
शाहू
महाराज की शिक्षा राजकोट के 'राजकुमार
महाविद्यालय' और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत
के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने
दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया। छत्रपति शाहू महाराज ने
दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें
शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका
विरोध किया। वे छत्रपति शाहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह
कह दिया कि- "आप शूद्र हैं और शूद्र
को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार
नहीं है। छत्रपति शाहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।
यज्ञोपवीत
संस्कार
शाहू
महाराज की शिक्षा राजकोट के 'राजकुमार
महाविद्यालय' और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत
के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने
दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया। छत्रपति शाहू महाराज ने
दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें
शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका
विरोध किया। वे छत्रपति शाहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह
कह दिया कि- "आप शूद्र हैं और शूद्र
को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार
नहीं है। छत्रपति शाहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।
यज्ञोपवीत संस्कार
शाहू
महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते
थे। परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार, इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार
किया करता था। एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध
समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे। महाराजा कोल्हापुर के स्नान
के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए श्लोक को सुनकर राजाराम
शास्त्री अचम्भित रह गए। पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा की- "चूँकि महाराजा शूद्र हैं, इसलिए
वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार करते है।" ब्राह्मण पंडित की बातें
शाहू महाराज को अपमानजनक लगीं। उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। महाराज शाहू
के सिपहसालारों ने एक प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित नारायण भट्ट सेवेकरी को महाराजा का यज्ञोपवीत संस्कार करने
को राजी किया। यह सन 1901 की घटना है। जब यह खबर कोल्हापुर के ब्राह्मणों
को हुई तो वे बड़े कुपित हुए। उन्होंने नारायण भट्ट पर कई तरह की पाबंदी लगाने की धमकी
दी। तब इस मामले पर शाहू महाराज ने राज-पुरोहित से सलाह ली, किंतु राज-पुरोहित ने भी
इस दिशा में कुछ करने में अपनी असमर्थता प्रगट कर दी। इस पर शाहू महाराज ने गुस्सा
होकर राज-पुरोहित को बर्खास्त कर दिया।
शाहू
महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते
थे। परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार, इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार
किया करता था। एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध
समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे। महाराजा कोल्हापुर के स्नान
के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए श्लोक को सुनकर राजाराम
शास्त्री अचम्भित रह गए। पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा की- "चूँकि महाराजा शूद्र हैं, इसलिए
वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार करते है।" ब्राह्मण पंडित की बातें
शाहू महाराज को अपमानजनक लगीं। उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। महाराज शाहू
के सिपहसालारों ने एक प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित नारायण भट्ट सेवेकरी को महाराजा का यज्ञोपवीत संस्कार करने
को राजी किया। यह सन 1901 की घटना है। जब यह खबर कोल्हापुर के ब्राह्मणों
को हुई तो वे बड़े कुपित हुए। उन्होंने नारायण भट्ट पर कई तरह की पाबंदी लगाने की धमकी
दी। तब इस मामले पर शाहू महाराज ने राज-पुरोहित से सलाह ली, किंतु राज-पुरोहित ने भी
इस दिशा में कुछ करने में अपनी असमर्थता प्रगट कर दी। इस पर शाहू महाराज ने गुस्सा
होकर राज-पुरोहित को बर्खास्त कर दिया।
आरक्षण की व्यवस्था
सन 1902 के
मध्य में शाहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए
थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत
शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये। महाराज के इस
आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी। उल्लेखनीय है कि सन 1894 में,
जब शाहू महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन
में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी
नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिकीय पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे।
शाहू महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के कारण सन 1912 में
95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या अब 35 रह गई थी। सन 1903 में
शाहू महाराज ने कोल्हापुर स्थित शंकराचार्य मठ की सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया।
दरअसल, मठ को राज्य के ख़ज़ाने से भारी मदद दी जाती थी। कोल्हापुर के पूर्व महाराजा
द्वारा अगस्त, 1863 में प्रसारित एक आदेश के अनुसार, कोल्हापुर स्थित मठ
के शंकराचार्य को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले महाराजा से अनुमति लेनी आवश्यक
थी, परन्तु तत्कालीन शंकराचार्य उक्त आदेश को दरकिनार करते हुए संकेश्वर मठ में रहने
चले गए थे, जो कोल्हापुर रियासत के बाहर था। 23
फ़रवरी, 1903 को शंकराचार्य ने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति
की थी। यह नए शंकराचार्य लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के
क़रीबी थे। 10 जुलाई, 1905 को
इन्हीं शंकराचार्य ने घोषणा की कि- "चूँकि कोल्हापुर भोसले वंश की जागीर रही है,
जो कि क्षत्रिय घराना था।
इसलिए राजगद्दी के उत्तराधिकारी छत्रपति शाहू महाराज स्वाभविक रूप से क्षत्रिय हैं।"
सन 1902 के
मध्य में शाहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए
थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत
शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये। महाराज के इस
आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी। उल्लेखनीय है कि सन 1894 में,
जब शाहू महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन
में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी
नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिकीय पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे।
शाहू महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के कारण सन 1912 में
95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या अब 35 रह गई थी। सन 1903 में
शाहू महाराज ने कोल्हापुर स्थित शंकराचार्य मठ की सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया।
दरअसल, मठ को राज्य के ख़ज़ाने से भारी मदद दी जाती थी। कोल्हापुर के पूर्व महाराजा
द्वारा अगस्त, 1863 में प्रसारित एक आदेश के अनुसार, कोल्हापुर स्थित मठ
के शंकराचार्य को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले महाराजा से अनुमति लेनी आवश्यक
थी, परन्तु तत्कालीन शंकराचार्य उक्त आदेश को दरकिनार करते हुए संकेश्वर मठ में रहने
चले गए थे, जो कोल्हापुर रियासत के बाहर था। 23
फ़रवरी, 1903 को शंकराचार्य ने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति
की थी। यह नए शंकराचार्य लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के
क़रीबी थे। 10 जुलाई, 1905 को
इन्हीं शंकराचार्य ने घोषणा की कि- "चूँकि कोल्हापुर भोसले वंश की जागीर रही है,
जो कि क्षत्रिय घराना था।
इसलिए राजगद्दी के उत्तराधिकारी छत्रपति शाहू महाराज स्वाभविक रूप से क्षत्रिय हैं।"
स्कूलों व छात्रावासों की स्थापना
मंत्री
ब्राह्मण हो और राजा भी ब्राह्मण या क्षत्रिय हो तो किसी
को कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन राजा की कुर्सी पर वैश्य या फिर शूद्र शख्स बैठा हो
तो दिक्कत होती थी। छत्रपति शाहू महाराज क्षत्रिय नहीं, शूद्र मानी गयी जातियों में
आते थे। कोल्हापुर रियासत के शासन-प्रशासन में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व नि:संदेह
उनकी अभिनव पहल थी। छत्रपति शाहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी
जातियों समेत समाज के सभी वर्गों मराठा, महार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, ईसाई, मुस्लिम और जैन सभी के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएँ खोलने
की पहल की। शाहू महाराज ने उनके लिए स्कूल और छात्रावास खोलने के आदेश जारी किये। जातियों
के आधार पर स्कूल और छात्रावास असहज लग सकते हैं, किंतु नि:संदेह यह अनूठी पहल थी उन
जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं। उन्होंने दलित-पिछड़ी
जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने
आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। शाहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने
लग गया था। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले पिछड़ी जातियों के लड़के-लड़कियों की संख्या
में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। कोल्हापुर के महाराजा
के तौर पर शाहू महाराज ने सभी जाति और वर्गों के लिए काम किया। उन्होंने 'प्रार्थना समाज' के लिए भी काफ़ी काम किया था। 'राजाराम कॉलेज' का
प्रबंधन उन्होंने 'प्रार्थना समाज' को दिया था।
मंत्री
ब्राह्मण हो और राजा भी ब्राह्मण या क्षत्रिय हो तो किसी
को कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन राजा की कुर्सी पर वैश्य या फिर शूद्र शख्स बैठा हो
तो दिक्कत होती थी। छत्रपति शाहू महाराज क्षत्रिय नहीं, शूद्र मानी गयी जातियों में
आते थे। कोल्हापुर रियासत के शासन-प्रशासन में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व नि:संदेह
उनकी अभिनव पहल थी। छत्रपति शाहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी
जातियों समेत समाज के सभी वर्गों मराठा, महार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, ईसाई, मुस्लिम और जैन सभी के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएँ खोलने
की पहल की। शाहू महाराज ने उनके लिए स्कूल और छात्रावास खोलने के आदेश जारी किये। जातियों
के आधार पर स्कूल और छात्रावास असहज लग सकते हैं, किंतु नि:संदेह यह अनूठी पहल थी उन
जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं। उन्होंने दलित-पिछड़ी
जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने
आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। शाहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने
लग गया था। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले पिछड़ी जातियों के लड़के-लड़कियों की संख्या
में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। कोल्हापुर के महाराजा
के तौर पर शाहू महाराज ने सभी जाति और वर्गों के लिए काम किया। उन्होंने 'प्रार्थना समाज' के लिए भी काफ़ी काम किया था। 'राजाराम कॉलेज' का
प्रबंधन उन्होंने 'प्रार्थना समाज' को दिया था।
कथन
·
छत्रपति
शाहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ
दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा था कि- "वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता
के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।"
·
शाहू
महाराज जी ने 15 जनवरी, 1919 के
अपने आदेश में कहा था कि- "उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में
भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका
स्पष्ट कहना था कि- "छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित
जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा
जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।"
·
15
अप्रैल, 1920 को नासिक में 'उदोजी
विद्यार्थी' छात्रावास की नीव का पत्थर रखते हुए शाहू महाराज ने कहा था कि- "जातिवाद
का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी
बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे
संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना
चाहिए।
·
छत्रपति
शाहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ
दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा था कि- "वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता
के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।"
·
शाहू
महाराज जी ने 15 जनवरी, 1919 के
अपने आदेश में कहा था कि- "उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में
भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका
स्पष्ट कहना था कि- "छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित
जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा
जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।"
·
15
अप्रैल, 1920 को नासिक में 'उदोजी
विद्यार्थी' छात्रावास की नीव का पत्थर रखते हुए शाहू महाराज ने कहा था कि- "जातिवाद
का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी
बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे
संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना
चाहिए।
समानता की भावना
छत्रपति
शाहू महाराज ने कोल्हापुर की नगरपालिका
के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। यह पहला मौका था की राज्य नगरपालिका
का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था। उन्होंने हमेशा ही सभी जाति वर्गों के
लोगों को समानता की नज़र से देखा। शाहू महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों
की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने एक आदेश से इनके लिए
खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करा करवा दिया और उन्हें सामान्य व उच्च
जाति के छात्रों के साथ ही पढने की सुविधा प्रदान की।
निधन
छत्रपति
शाहू महाराज ने कोल्हापुर की नगरपालिका
के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। यह पहला मौका था की राज्य नगरपालिका
का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था। उन्होंने हमेशा ही सभी जाति वर्गों के
लोगों को समानता की नज़र से देखा। शाहू महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों
की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने एक आदेश से इनके लिए
खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करा करवा दिया और उन्हें सामान्य व उच्च
जाति के छात्रों के साथ ही पढने की सुविधा प्रदान की।
निधन
छत्रपति
शाहूजी महाराज का निधन 10 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी
मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। शाहू
महाराज के मन में दलित वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा
में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में याद रखे
जायेंगे।
छत्रपति
शाहूजी महाराज का निधन 10 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी
मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। शाहू
महाराज के मन में दलित वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा
में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में याद रखे
जायेंगे।
Great Rajarshi
ReplyDelete