Friday, February 17, 2017

श्रीमंत थोरले बाजीराव -Thorale Bajirao Peshwa

श्रीमंत थोरले बाजीराव

पूरा नाम - बाजीराव बाळाजी भट (पेशवे)
उपाधियाँ -  राऊ, श्रीमंत
जन्म - 18 अगस्त 1700
मृत्यु - २८ अप्रैल १७४०
मृत्यु स्थान - रावेरखेडी, पश्चिम निमाड, मध्य प्रदेश
समाधी - नर्मदा नदी घाट, रावेरखेडी
पूर्वाधिकारी - बाळाजी विश्वनाथ पेशवा
उत्तराधिकारी - बाळाजी विश्वनाथ पेशवा
उत्तराधिकारी -  बाळाजी बाजीराव पेशवा
जीवन संगी - काशीबाई, मस्तानी
पिता - बाळाजी विश्वनाथ पेशवा

माता -  राधाबाई
 श्रीमंत थोरले बाजीराव (१७०० - १७४०) महान सेनानायक थे। वे १७२० से १७४० तक मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधानमन्त्री) रहे। इनको 'बाजीराव बल्लाल' तथा 'थोरले बाजीराव' के नाम से भी जाना जाता है। इन्होने अपने कुशल नेतृत्व एवं रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का विस्तार (विशेषतः उत्तर भारत में) किया। इसके कारण ही उनकी मृत्यु के २० वर्ष बाद उनके पुत्र के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच सका। बाजीराव प्रथम को सभी ९ पेशवा में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
इनके पिता बालाजी विश्वनाथ पेशवा भी शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। १३-१४ वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते थे। उनके साथ घूमते हुए वह दरबारी चालों व रीतिरिवाजों को आत्मसात करते रहते थे।यह क्रम १९-२० वर्ष की आयु तक चलता रहा। जब बाजीराव के पिता का अचानक निधन हो गया तो मात्र बीस वर्ष की आयु के बाजीराव को शाहूजी महाराज ने पेशवा बना दिया।
जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके १९ वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पव्यस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते रहे। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उसमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज चिमाजी अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया। इसके लिए उन्हें अपने दुश्मनों से लगातार लड़ाईयाँ करना पड़ी। अपनी वीरता, अपनी नेतृत्व क्षमता व कौशल युद्ध योजना द्वारा यह वीर हर लड़ाई को जीतता गया। विश्व इतिहास में बाजीराव पेशवा ऐसा अकेला योद्धा माना जाता है जो कभी नहीं हारा। छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह वह बहुत कुशल घुड़सवार था। घोड़े पर बैठे-बैठे भाला चलाना, बनेठी घुमाना, बंदूक चलाना उनके बाएँ हाथ का खेल था। घोड़े पर बैठकर बाजीराव के भाले की फेंक इतनी जबरदस्त होती थी कि सामने वाला घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था।
इस समय भारत की जनता मुगलों के साथ-साथ अंग्रेजों व पुर्तगालियों के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी। ये भारत के देवस्थान तोड़ते, जबरन धर्म परिवर्तन करते, महिलाओं व बच्चों को मारते व भयंकर शोषण करते थे। ऐसे में बाजीराव पेशवा ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक ऐसी विजय पताका फहराई कि चारों ओर उनके नाम का डंका बजने लगा। लोग उन्हें शिवाजी का अवतार मानने लगे। बाजीराव में शिवाजी महाराज जैसी ही वीरता व पराक्रम था तो वैसा ही उच्च चरित्र भी था।
अधिकार पद ग्रहण करते ही बाजीराव ने अपने करतब मराठी के शत्रुओं पर आजमाने शुरू किये हैद्राबाद का निजाम, जजीर का सिददी, गोवा के पोर्तुगीज, मुघल दरबार के सरदार और सेनापती, मराठी के शत्रु और छिपे हुए हितशत्रु, सातारा दरबार में के ग़द्दार इन सब को थोरले बाजीराव ने अलग अलग सबक सिखाया. पुराने मनोवृत्ति के सरदार इनको दिमाग से प्रयोग करके निकाल दिया और उनके जगह पर शिंदे, होळकर, पवार, जाधव, फाड़के, पटवर्धन, विंचूरकर इन जैसे दमदार सरदारों का लाया इन सरदार को अलग-अलग लष्करी और प्रशासकीय कार्य सौपा के उन्हें अलग-अलग प्रांत बाट दिये. इस तरिके के वजह से मराठी राज्य की संघराज्यात्मक रचना ताकदवर होकर राज्य का सर्वागीण बल बढ़ा. स्वराज्य के विस्तार में से मराठी साम्राज्य खड़ा हुआ. मराठी समाज में आक्रमक, धाडसी वृत्ती निर्माण हुयी इसका श्रेय थोरले बाजीराव को ही जाता है.

पराक्रमी पेशवा की 40 वर्ष की उम्र में पॅरा – टायफॉईड (नवज्वर) के वजह से नर्मदा नदी के पास रावेरखेडी यहाँ 28 अप्रैल 1740 को सुबह मौत हुई.


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